Bihar Lok Sabha Elections Secheduale


Bihar Lok Sabha दोस्त से दुश्मन और दुश्मन से दोस्त :

हैलो दोस्तो Bihar Lok Sabha चुनाव का लहर अभी जारी है तो आहिए जानते है बिहार के साथ अन्य राज्य के चुनावी लहर जिसमे प. बंगाल में ममता की 'एकला चलो' से चुनौती; और बिहार में 'अपनों' में सियासी संग्राम तो चलिये जानते है पूरी बाते।

Bihar Lok Sabha Elections Secheduale

  • मुख्यमंत्री नितीश कुमार

मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने मंत्रिमंडल विस्तार करने के 18 घंटे के बाद मंत्रियों के बीच विभागों ने हमेशा की तरह अपने पास आईपीएस वाले गृह, आईपीएस वाले सामान्य प्रशासन, मंत्रिमंडल सचिवालय, निर्वाचन और निगरानी विभाग रखा है। हम पार्टी के नेता संतोष कुमार सुमन का दो विभाग बदला गया। 49 दिन पहले एनडीए सरकार के बनने के दिन 28 जनवरी को उनको आईटी (सूचना प्रावैधिकी) और एससी-एसटी कल्याण विभाग दिया गया था जिसके बाद उनके पिता जीतन राम मांझी और उन्होंने नाराजगी जाहिर की थी। यह देखते हुए मुख्यमंत्री ने आईटी विभाग के साथ-साथ अब बदल कर लघु जल संसाधन विभाग और आपदा प्रबंधन विभाग भी दे दिया है। पिछली महागठबंधन सरकार में संतोष के पास एससी-एसटी कल्याण विभाग था।

आहिए जानते है किसका कद बढ़ा...और किसका घटा ?

  • मंगल को फिर स्वास्थ...

मंगल पांडेय को स्वाथ्य व कृषि विभाग मिला है। पिछली एनडीए सरकार में भी वो स्वास्थ्य मंत्री थे। नीरज कुमार सिंह को गांव-गांव में पेयजल पहुंचाने वाले पीएचईडी की ज़िम्मेदारी देकर कद बढ़ाया गया है। पिछली एनडीए सरकार में वो पर्यावरण-वन मंत्री थे। करीब 10 साल बाद मंत्री बने नितीश मिश्रा को उधोग और पर्यटन विभाग दे परफोर्म करने की छूट दी गई है। नितिन नवीन को नगर विकास व आवास और विधि देकर उनका कद छोटा नहीं होने दिया। पिछली सरकार के समय वो पथ निर्माण मंत्री थे।

  • दिलीप राजस्व- भूमि मंत्री...

दिलीप जयसवाल राजस्व व भूमि मंत्री बने हैं। इस विभाग के मंत्री प्रायः विवादों में रहते हैं। भाजपा कोटे से ही मंत्री बने राम सूरत कुमार व राजद कोटे से पिछली महागठबंधन सरकार के समय मंत्री रहे आलोक मेहता दोनों ही सीओ ट्रांसफर के मसले पर विवाद में आ गए थे। सीएम को बड़े पैमाने पर किए गए ट्रांसफर को रद्द करवाना पड़ा था। पिछली एनडीए सरकार में खान भूतत्व विभाग की जिम्मेदारी संभालने वाले जनक राम को उनकी ही जमात से जुड़े विभाग एससी एवं एसटी कल्याण की जिम्मेवारी मिली है।

  • सम्राट चौधरी सरकार में नंबर-2 पोजिशन
Bihar Lok Sabha Elections Secheduale

सुशील कुमार मोदी एनडीए सरकार में करीब 10 वर्ष डिप्टी सीएम रहे। वे लगातार वित्त और वाणिज्य कर मंत्री रहे। भाजपा ने उनकी जगह पर सम्राट चौधरी को बिठाया है। उन्हें मोदी के दोनों विभागों की जिम्मेवारी देकर ये स्पष्ट मैसेज भी दिया है कि राज्य सरकार में मुख्यमंत्री के बाद नंबर-2 पोजिशन पर सम्राट चौधरी ही हैं। हालांकि दूसरे डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा को पथ निर्माण खनन भूतत्व जैसे महत्वपूर्ण विभागों के साथ कला-संस्कृति विभाग की जिम्मेवारी देकर उनकी महत्ता को भी बरकरार रखा गया है।

  • उस से पहले ये जान लेते है गठबंधन राजनीति की शुरुआत कब हुई?
ऐतिहासिक रूप से देखें तो देश में गठबंधन राजनीति की शुरुआत वर्ष 1967 में हुई थी। इस साल नौ राज्यों में गठबंधन सरकारें सत्ता में आई। यह इस बात का संकेत था कि स्वतंत्रता के बाद भारत की राजनीति में पहली बार कांग्रेस के रूप में एकल पार्टी का वर्चस्व अब समाप्ती की ओर था। यह वह दौर था, जब समाजवादी आंदोलन जोर पकड़ रहा था और यादव, जाट, रेड्डी, पटेल और मराठा जैसी 'पिछड़ी जतियों' का कांग्रेस से मोहभंग हो रहा था। समाजवादी राम मनोहर लोहिया, जो कभी खुद भी कांग्रेसी थे, कांग्रेस का मुकाबला करने के लिए खंडित विपक्ष से प्रत्येक कांग्रेस उम्मीदवार के खिलाफ एक ही उम्मीदवार खड़ा करने का आग्रह किया। 1967 के आम चुनावों में लोहिया फॉर्मूला काफी हद तक सफलता मिली, जिससे कांग्रेस की सीटों को संख्या में भारी सेंध लगी और नौ राज्यों- उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में गैर कांग्रेसी गठबंधन सरकारें बनीं। यह समाजवादी विचारधारा वाली पार्टियों और आरएसएस-नियंत्रित जनसंघ सहित माध्यममार्गी-दक्षिणपंथी ताकतों द्वारा गठनबंधन की राजनीति में एक नया प्रयोग था।
  • 1977- केंद्र में पहली बार गठबंधन सरकार बनी थी

राज्यों के स्तर पर इस प्रयोग की सफलता ने 1977 में राष्ट्रीय गठबंधन के प्रयोग के लिए प्रेरित किया, जब कम्युनिस्ट पार्टियों को छोड़कर पार्टियों को छोड़कर अन्य सभी बड़ी विपक्षी पार्टियां इंदिरा गांधी के खिलाफ एकजुट हो गई। चार बड़ी पार्टियों के जनता पार्टी में विलय के बाद मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। लेकिन आंतरिक विरोधाभासों के चलते देसाई सरकार गिर गई। इस तरह राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन राजनीति की मजबूरीयों की ओर भी ध्यान खींचा। 1989 में सत्ता में आई सरकार बेमेल दलों के गठबंधन का एक उदाहरण था, जब वीपी सिंह की अगुवाई वाले जनमोर्चा, लोकदल और कांग्रेस (एस) को मिलाकर बने जनता दल की सरकार को दो घोर वैचारिक विरोधी दलों ने समर्थन दिया। यह गठबंधन कांग्रेस के खिलाफ था। लेकिन 7 साल के बाद यानी 1996 के चुनाव आते-आते गठबंधन राजनीति के ऊंट ने करवट बदल ली थी। 1996 में समाजवादीयों और जनता दल पृष्ठभूमि से आने वाले क्षेत्रीय दलों ने केंद्र में संयुक्त मोर्चा बनाया, जिसे कांग्रेस ने बाहर से समर्थन दिया। देवेदौड़ा और गुजराल थोड़े-थोड़े समय तक प्रधानमंत्री रहे और फिर यह गठबंधन भी टूट गया।

इन 2 राज्य, जहां 5 साल तक सियासी रास्ते बनते और बिगड़ते रहे:

  • बंगाल

बीते पांच साल ममता सरकार के सियासी कॅरियर के सबसे चुनौती पूर्ण रहे। इस दौरान भ्रष्टाचार के आरोपों में तृणमूल के 3 विधायक, दो मंत्री समेत एक दर्जन नेता जेल गए। 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा 38% से ज्यादा वोट के साथ मुख्य विपक्षी बन गई। ऊपर से चुनाव से ठीक पहले सामने आए संदेशखली में यौन उत्पीड़न के मामलों ने मुश्किल बढ़ाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी 4 चुनावी रैलियों में संदेशखाली मुद्दे को नारी सम्मान से जोड़े चुके हैं। तृणमूल अकेले चुनाव लड़ रही है, जबकि कांग्रेस और वाम दल अब तक हाथ नहीं मिला पाए हैं। दूसरी ओर, भाजपा 2014 से सभी 42 लोकसभा सीटों पर अपना कुल वोट बैंक 23% से ज्यादा बढ़ा चुकी है।

  • कुल सीट - 42
  • कुल वोटिंग- 81.76
        2019           सीट        वोट %

       तृणमूल 

           22      43.59
       भाजपा            18      40.64
        कांग्रेस            02       5.67
  • बिहार

पांच साल सरकार के गठजोड़ बदलते रहे। एनडीए के साथ सरकार बनाने वाली जदयु ने 9 अगस्त 2022 को नाता तोड़ा और राजद के साथ हाथ मिलाकर सरकार बनाई। इस दौरान जब केंद्रीय जांच एजेंसियों ने लालू परिवार समेत राजद के दर्जन भर नेताओं के यहां छापे मारे तो इसके बाद सियासत फिर बदली। अब जदयु-भाजपा साथ हैं और राजद नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर मैदान में उतर आए हैं। यहां परिवारवाद-भ्रष्टाचार बनाम रोजगार व महंगाई मुद्दा हैं। बिहार में इंडिया गठबंधन की नींव पड़ी, उससे नितीश अलग हो चुके हैं। पिछले चुनाव में एनडीए का कुल वोट 53.25% तो यूपीए का 30.61% था। इस बार यूपीए से करीब 6% वोट वाले वीआईपी, रालोसपा अलग हो चुके हैं।

  • कुल सीट- 40
  • कुल वोटिंग- 66.80%

        2019           सीट        वोट %

       भाजपा  

           39      53.25
       कांग्रेस           01      30.61
       अन्य             00      16.14

  • झारखंड- सोरेन जिल में, इसलिए भष्टाचार ही मुद्दा

समीकरण:- 2019 में यूपीए के 32.16% तो एनडीए के 55.29% वोट थे। इस बार भी एनडीए हावी है, क्योंकि मनी लॉन्ड्रिंग केस में पूर्व सीएम हेमंत सोरेन जिल में हैं। इससे झामुमो भी लय में नहीं है। इसलिए यहां भ्रष्टाचार बनाम विकास मुद्दा बना है। कांग्रेस की एकमात्र सांसद गीता कोड़ा भाजपा उम्मीदवार बन चुकी हैं।

  • कुल सीट- 14
  • कुल वोट- 66.80%

        2019           सीट        वोट %

       भाजपा  

           12      55.39
       कांग्रेस           01      11.51
       झामुमो           01      15.81

  • ओड़ीशा: पहली बार बीजद के लिए एंटी इंकम्बेंसी

समीकरण:- भाजपा से गठबंधन की अटकलें और वीके पंडियन के हाथ चुनावी कमान के चलते बीजद के लिए एंटी इंकम्बेंसी और संगठन को लेकर संशय है। बीजद में कई नेता नाराज हैं। 2014-19 के बीच भाजपा को वोट 16% बढ़ा तो बीजद का 1.32% घटा था। भाजपा-बीजद का वोट 81% टी यूपीए का 14.73%। 

  • कुल सीट- 21
  • कुल वोटिंग- 73.06%

        2019           सीट       वोट %

       भाजपा  

           12      42.76
       कांग्रेस           08      38.37
       बीजद           01      13.81
  • Bihar Lok Sabha Elections 2024 Secheduale
  1. प्रथम चरण (19 अप्रैल) - औरंगाबाद, गया, नवादा, जमुई
  2. दूसरा चरण (26 अप्रैल) - किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर, बांका
  3. तीसरा चरण (7 मई)   - झांझारपुर, सुपौल, अररिया, मधेपुरा, खगड़िया
  4. चौथा चरण (13 मई)   - दरभंगा, उज्जारपुर, समस्तीपुर, बेगूसराय, मुंगेर
  5. पाँचवा चरण (20 मई)  - सीतामढ़ी, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, सारण, हाजीपुर
  6. छठा चरण (25 मई)   - वाल्मीकि नगर, पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण, शिवहर, वैशाली, गोपालगंज, सिवान, महाराजगंज
  7. सातवाँ चरण (1 जून)   - नालंदा, पटना साहिब, पाटलिपुत्र, अररिया, बक्सर, सासाराम, काराकट, जहानाबाद

  • Conclusion

दोस्तो इस लेख में मैंने आपको Bihar Lok Sabha से जूरी सारी बाते बताया हूँ, और इससे हमें यह सीख मिलती है कि राजनीतिक मंत्रिमंडल में परिवर्तन होने पर आमतौर पर संघर्ष और असंतोष उत्पन्न हो सकता है। मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने मंत्रियों के विभागों को बदलने के बाद विवाद पैदा हुआ, जिससे उनके पिता और पार्टी के नेता संतोष कुमार सुमन का नाराजगी जाहिर हुई। यह घटना दिखाती है कि राजनीतिक दलों के अंदरीय विवादों और दलाली की संभावना होती है, जो मंत्रिमंडल में परिवर्तन के समय उत्पन्न हो सकती है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि राजनीतिक दलों के भीतर संगठनात्मक व्यवस्थाओं की महत्वपूर्णता होती है और विभाजन या आसंतोष से निपटने की क्षमता आवश्यक होती है।

Tags

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.